नई दिल्ली
‘अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ’ द्वारा सोमवार, 25 सितंबर 2023 को हंसराज महाविद्यालय के संगोष्ठी कक्ष में ‘क्या संविधान की सीमा में भारत एक हिन्दू राष्ट्र है’ विषय एक वैचारिक गोष्ठी आयोजित की गई। इस वैचारिक गोष्ठी का लक्ष्य लोगों में विराट हिन्दू भाव के भारतीयता बोध को संवैधानिक उपबंधों से जोड़ते हुए जागरूकता उत्पन्न करना है। इस गोष्ठी के मुख्य वक्ता ‘अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ’ के अध्यक्ष एवं पूर्व विधि एवं न्याय मंत्री; भारत सरकार डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी थे, जिसकी अध्यक्षता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजकुमार भाटिया ने की। इसके अतिरिक्त श्री चन्द्र प्रकाश सिंह(निदेशक,अरुन्धति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ), प्रो. गीता भट्ट(निदेशक,एनसीडब्ल्यूईबी), प्रो. राकेश पाण्डेय, डॉ. संजय कुमार (संयोजक, अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ), डॉ. राजीव अग्रवाल, प्रवेश कुमार (प्रवक्ता, वीएचपी), रघुवंश सिंघल, मनोज खन्ना सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। यह कार्यक्रम पंडित दीन दयाल उपाध्याय की 907वीं एवं हिन्दुत्त्व के महानायक श्रद्धेय अशोक सिंघल जी की 97वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित की गई।
कार्यक्रम का संचालन प्रो. राकेश कुमार पांडेय ने किया। इसकी औपचारिक शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। उसके पश्चात पुष्पगुच्छ देकर अतिथियों का स्वागत किया गया। अरूंधती वशिष्ठ अनुसन्धान पीठ के निदेशक डॉ चंद्रप्रकाश सिंह ने विषय का प्रवर्तन करते हुए करते हुए भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य के संदर्भ में कार्यक्रम की विधिवत भूमिका पर चर्चा की पाश्चात्य नेशन और भारतीय राष्ट्र इन दोनों शब्दों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘’राष्ट्र एक दैवीय प्रादुर्भाव है’’ भारत की राष्ट्रीय चेतना ही हिन्दू है।इसलिए भारत हिन्दू राष्ट्र है।
मुख्य वक्ता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने संवैधानिक उपबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीयता बोध के भाव को बनाए रखने के लिए हिन्दुत्त्व आवश्यक है। इसको इन्होंने अनुच्छेद 15,२५, ४४, ४८, ३४३, ३५१ आदि के संदर्भ में यह स्पष्ट किया कि “हमारा संविधान हिंदू राष्ट्र की रूपरेखा को बल देता है।” उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में प्रत्येक भारतीय निवासी का डीएनए एक ही है चाहे वो किसी भी धर्म का हो।संविधान जाति उपासना पद्धति लिंग और क्षेत्र के आधार पर किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करता यह केवल और केवल हिन्दू चिंतन में ही संभव है इसलिए नस्ल के आधार पर सभी भारतीय हिंदू ही हैं। जिसको उन्होंने ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों से भी जोड़ा। अनुच्छेद ४८ में गौरक्षा के संदर्भ को उन्होंने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा से प्रेरित बताया। “हिंदुस्तान की एकता क्या है” के संदर्भ में अंबेडकर के विचारों को हर भारतीय के लिए पठनीय बताया। अंततः उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ‘हमें अपने संविधान को हिंदू संविधान ही मानना चाहिए और अलग से किसी हिंदू संविधान की आवश्यकता नहीं है, इसी संविधान को उसके वास्तविक रूप में पूरी तरह लागू करने का प्रयास करना चाहिए आवश्यकता पड़ने परइसमें संशोधन भी संभव है इसलिए मैं कहता हूँ की भारत एक हिन्दू राष्ट्र है।
कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए श्री राजकुमार भाटिया ने कहा कि हिन्दुत्त्व भारत की पहचान है। नई पीढ़ी में विराट हिन्दुत्त्व के समुचित भावबोध को जगाकर भारतीयता का बोध संचारित कर सकते हैं जो दीर्घकालिक होगा।
कार्यक्रम के अंत में अरुधती वशिष्ठ अनुसन्धान दिल्ली संयोजक डॉ. संजय कुमार ने अतिथियों का विशेष धन्यवाद करते हुए इसके औपचारिक समाप्ति की घोषणा की। कार्यक्रम का अंत राष्ट्रगान के साथ हुआ।